ये सत्य है के संस्कारों का ज़िम्मा हम महिलाओं पर ही आता है I फिर चाहे वो तीज हो या करवा चौथ I हर त्यौहार में अपने परिवार के लिए मंगल कामना करना , पति की लम्बी आयु के लिए व्रत रखना, बच्चो के लिए व्रत रखना जैसे कई पर्व है जहाँ ज्यादातर स्त्रीयां ही भागिदार होती है I पंडितजी भी अपनी हर बात यजमान के घरवाली को ही करने को कहते है I उचित भी है I आदमी पैसे कमाकर कर लता है और औरत उसे घर गृहस्ती में खर्च करती है I ये तो हुई ताल मेल की बात I मगर क्या महिला को ये अधिकार नहीं है की कोई पर्व उसके कल्याण के लिए भी रखा जाय ? दुर्गा माँ , सरस्वती माँ, लक्ष्मी माँ, काली माँ, संतोषी माँ, जैसे और भी कई माताएँ है जिनकी पूजा हम करते है अपने कल्याण के लिए I एक व्रत अपनी अर्धांगिनी के नाम भी यदि पुरुष रख ले तो शायद उस महिला का भी कुछ कल्याण जीवन में हो जाय I
वय्तिगत रूप से मुझे सभी त्यौहार अच्छे लगते है और जमकर हिस्सा भी लेती हूँ I मगर, अपनी तरह से I मेरे लिए, इश्वर से कुछ मांगने के बजाय यदि उनका धन्यवाद् किया जाय तो वही सही पूजा है I मानव जनम देकर , बुद्धिमती बनाकर उन्होंने सब कुछ दे दिया I अब ये मुझ पर है की में कैसे उनका स्मरण करती हूँ I मेरे लिए मेरे इष्ट मेरे मित्र है , मुझे समझते है I फिर उनसे कुछ मांगकर उनके दिए हुए जीवन का अपमान नहीं कर सकती I मित्रता ही मेरी भक्ति है I ये तो रही मेरी बात I मगर आज जिस कार्य से ये पोस्ट बना रही हूँ उसके विषय में बात करते है I
महिलाओं को भी कल्याणकारी जीवन जीने का अधिकार होना चाहिए I उनकी भी मंगल कामना का कोई दिन नियुक्त हो जहाँ उनके पुरुष उनके लिए अपने व्यस्त जीवन में से थोडा समय निकाल कर उनके लिए दुयाँऐ करें I और वो भी पुरे सज धज कर I फिर इस्ताग्राम और दुसरे सोशल साइट्स में अपनी फोटोज अपलोड करें, रील बनाय I अखीर महिलाओं को भी मौका मिले उन्हें देखने का I खैर ये सब बातें तो आज की हकीक़त है I सोशल मीडिया में अपना अपडेट बताना बहुत ही ज़रूरी हो गया है नहीं तो लोग क्या कहेंगे? आजकल तो आइस क्रीम खरीदकर खाने के बजाय उसकी सेल्फी पहले लेते है फिर चाहे आइस क्रीम पिघलने क्यों ना लग रहा हो I
सबकुछ एक तरफ और श्रधा आस्था एक तरफ I आज से बीस साल , तीस साल, चालीस साल पहले भी लोग करवा चौथ मानते थे और आने वाले सालों में भी मनाएंगे I बस पहले सब इतना दिखावा नहीं करते थे I बस पूजा ही होती थी I आज के ज़माने में हम जेंडर इक्वलिटी की बात करते है तो पर्वो में भी साझेदारी होनी चाहिए I जहाँ महिलाए अपने अपने पति के लम्बी आयु के लिए व्रत रखती है वही पुरुष भी अपनी अर्धांगिनी के मंगल कामना के लिए व्रत रखे I तभी साझेदारी अच्छे से पूरी होगी I
प्रेम का भी आजकल डायरेक्ट कनेक्शन व्रतों के साथ हो गया है I अगर तुमने व्रत नहीं रखा तो तुम प्रेम नहीं करती, कल्याण नहीं चाहती I लेकिन क्या व्रत रखना मात्र, प्रेम दर्शाता है ? प्रेम किसी पर्व का मोहताज कभी नहीं हो सकता I जो प्रेम करते है, चाहते है,वो तो हमेशा ही अपने प्रियजन का कल्याण ही चाहेंगे I किसी पर्व का इंतज़ार नहीं करेंगे I हर रोज़ उनकी सलामती की दुआ करेंगे I हर लम्हा उनके भलाई की सोचेंगे I दिखावा नहीं करेंगे I श्रधा पूजा कभी दिखावा नहीं होना चाहिए I वो तो एकदम निर्मल निष्पाप होना चहिये I अपने इष्ट के करीब जाने का मार्ग होना चाहिए I आत्मा की शुधि का मार्ग होना चाहिए I छल कपट से परे एक शिशु के निष्पाप ह्रदय की भातीं होना चाहिए I तभी सही मायने में कोई भी पूजा सफल हो पायेगी I मन शांत हो पायेगा I सुखदायी होगा I